भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साईटर सीटोमौरांग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKParichay |चित्र= |नाम=साईटर सीटोमौरांग |उपनाम=Sitor Situmoran...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKParichay | {{KKParichay | ||
− | |चित्र= | + | |चित्र=Sitor Situmorang.jpg |
|नाम=साईटर सीटोमौरांग | |नाम=साईटर सीटोमौरांग | ||
|उपनाम=Sitor Situmorang | |उपनाम=Sitor Situmorang |
15:59, 26 मार्च 2024 के समय का अवतरण
साईटर सीटोमौरांग
जन्म | 2 अक्तूबर 1923 |
---|---|
निधन | 21 दिसम्बर 2014 |
उपनाम | Sitor Situmorang |
जन्म स्थान | हरिअनबोहो, उत्तरी सुमात्रा, इण्डोनेशिया |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
हरे काग़ज़ पर लिखे ख़त (1953), kavitaaoM ke bIc (1955), अनाम छवि (1956), नई सदी (1961), समय की दीवार (1976), सफ़रनामा (1976), रात में पेरिस (2001) — सभी कविता-संग्रह। 1965 में लेखों का संग्रह ’क्रान्तिकारी साहित्य’ प्रकाशित हुआ। इसके अलावा तीन नाटक भी प्रकाशित हुए — मोतियों भरा रास्ता, आख़िरी मोर्चाबन्दी (1954), पत्थरों का द्वीप (1954)। एक कहानी-संग्रह — पेरिस में हुई हार और हिमपात (1956) | |
विविध | |
कवि, नाटककार, आलोचक। हालाँकि साईटर सीटोमौरांग ने 1949 में लिखना शुरू किया, लेकिन फिर भी वे ’पैंतालिस की पीढ़ी’ काव्य-आन्दोलन के सहभागी रहे। 1963 में काहिरा के एशियाई व अफ़्रीकी लेखक सम्मेलन में भाग लेनेवाले इण्डोनेशियाई लेखकों के दल की अगुआई की। पिछले सदी के छठे दशक में फ़्रांस में चले अस्तित्त्ववादी और प्रतीकवादी आन्दोलनों के प्रभाव में रहे। इण्डोनेशियाई थियेटर अकादेमी में अध्यापन किया। 1966 में सुकार्तो के पतन के बाद सत्ता हथियाने वाले सैन्य चौगुटे ने साईटर को भी गिरफ़्तार करके दस साल तक सालेम्बा जेल में रखा। फिर जेल से रिहा होने के बाद वे दो साल तक अपने ही घर में नज़रबन्द रहे। फिर 1982 में हॉलैण्ड चले गए और वहाँ लेयडेन विश्वविद्यालय में इण्डोनेशियाई भाषा पढ़ाने लगे। 1955 में इन्हें इण्डोनेशिया का ’राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार मिला तथा 1976 में जकार्ता कला परिषद का पुरस्कार। | |
जीवन परिचय | |
साईटर सीटोमौरांग / परिचय |