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"हम सुपारी-से / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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दिन जवानी के | दिन जवानी के |
11:57, 4 दिसम्बर 2008 का अवतरण
दिन सरौता
हम सुपारी-से।
ज़िंदगी-है तश्तरी का पान
काल-घर जाता हुआ मेहमान
चार कंधों की
सवारी-से।
जन्म-अंकुर में बदलता बीज
मृत्यु है कोई ख़रीदी चीज़
साँस वाली
रेजगारी-से।
बचपना-ज्यों सूर, कवि रसखान
है बुढ़ापा-रहिमना का ग्यान
दिन जवानी के
बिहारी-से।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।