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13:59, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
जो खिल रहा है...
बीड़ी-सा सुलगता हुआ...
टेढ़ी हवा का रुख़ और जिसे सुलगाता है
वह...
मेरे ईमान की मिट्टी में
खिला
बुरूँश है...।