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वसन्त के दिन हैं | वसन्त के दिन हैं |
19:17, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
वसन्त के दिन हैं
रास्ते से चलता हूँ
एक पत्ती गिरती हुई छूती है
कोंपलों की तरह निकलते हैं बच्चे
मैं बहुत सुबह जाग पड़ता हूँ
जैसे मौसम से निकला हूँ
और सबको ढूंढ़ता हूँ।
इतना हलका और
इतना भारी हो गया हूँ
कि हँस पड़ता हूँ
उदासी से निकल
करूणा में उतरा रहा हूँ
चल रहा हूँ मैं
मैं ठहर नहीं पा रहा हूँ।