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"पता नहीं / जयप्रकाश मानस" के अवतरणों में अंतर

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नाचा के मुखौटे<br>
 
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हम कहाँ उड़ रहे...
 
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02:25, 5 मार्च 2008 के समय का अवतरण


कभी मीठा-खारा पानी
लोहा पत्थर कभी
कुछ-न-कुछ होता है प्राप्य
जब ज़मीन खोदते हैं आप या हम
पितरों की अनझुकी रीढ़ के अवशेष
माखुर की डिबिया
चोंगी सुपचाने वाली चकमक
मूर्ति में देवता
देवता के हाथों में त्रिशूल खड्ग बाण
नाचा के मुखौटे
कभी भी मिल सकते हैं
यह सब पता है हम सभी को
पता नहीं है
हम कहाँ उड़ रहे...