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"केशव,कहि न जाइ / विनय पत्रिका / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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केशव , कहि न जाइ का कहिये । | केशव , कहि न जाइ का कहिये । | ||
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देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये । | देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये । | ||
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शून्य भीति पर चित्र ,रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे । | शून्य भीति पर चित्र ,रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे । | ||
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धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे। | धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे। | ||
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रविकर नीर बसै अति दारुन ,मकर रुप तेहि माहीं । | रविकर नीर बसै अति दारुन ,मकर रुप तेहि माहीं । | ||
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बदन हीन सो ग्रसै चराचर ,पान करन जे जाहीं । | बदन हीन सो ग्रसै चराचर ,पान करन जे जाहीं । | ||
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कोउ कह सत्य ,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै । | कोउ कह सत्य ,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै । | ||
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तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम , सो आपुन पहिचानै । | तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम , सो आपुन पहिचानै । | ||
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06:20, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
केशव , कहि न जाइ का कहिये ।
देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये ।
शून्य भीति पर चित्र ,रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे ।
धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे।
रविकर नीर बसै अति दारुन ,मकर रुप तेहि माहीं ।
बदन हीन सो ग्रसै चराचर ,पान करन जे जाहीं ।
कोउ कह सत्य ,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै ।
तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम , सो आपुन पहिचानै ।