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"सुन मन मूढ / विनय पत्रिका / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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सुन मन मूढ सिखावन मेरो। | सुन मन मूढ सिखावन मेरो। | ||
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हरिपद विमुख लह्यो न काहू सुख,सठ समुझ सबेरो॥ | हरिपद विमुख लह्यो न काहू सुख,सठ समुझ सबेरो॥ | ||
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बिछुरे ससि रबि मन नैननि तें,पावत दुख बहुतेरो। | बिछुरे ससि रबि मन नैननि तें,पावत दुख बहुतेरो। | ||
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भ्रमर स्यमित निसि दिवस गगन मँह,तहँ रिपु राहु बडेरो॥ | भ्रमर स्यमित निसि दिवस गगन मँह,तहँ रिपु राहु बडेरो॥ | ||
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जद्यपि अति पुनीत सुरसरिता,तिहुँ पुर सुजस घनेरो। | जद्यपि अति पुनीत सुरसरिता,तिहुँ पुर सुजस घनेरो। | ||
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तजे चरन अजहूँ न मिट नित,बहिबो ताहू केरो॥ | तजे चरन अजहूँ न मिट नित,बहिबो ताहू केरो॥ | ||
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छूटै न बिपति भजे बिन रघुपति ,स्त्रुति सन्देहु निबेरो। | छूटै न बिपति भजे बिन रघुपति ,स्त्रुति सन्देहु निबेरो। | ||
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तुलसीदास सब आस छाँडि करि,होहु राम कर चेरो॥ | तुलसीदास सब आस छाँडि करि,होहु राम कर चेरो॥ | ||
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23:45, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
सुन मन मूढ सिखावन मेरो।
हरिपद विमुख लह्यो न काहू सुख,सठ समुझ सबेरो॥
बिछुरे ससि रबि मन नैननि तें,पावत दुख बहुतेरो।
भ्रमर स्यमित निसि दिवस गगन मँह,तहँ रिपु राहु बडेरो॥
जद्यपि अति पुनीत सुरसरिता,तिहुँ पुर सुजस घनेरो।
तजे चरन अजहूँ न मिट नित,बहिबो ताहू केरो॥
छूटै न बिपति भजे बिन रघुपति ,स्त्रुति सन्देहु निबेरो।
तुलसीदास सब आस छाँडि करि,होहु राम कर चेरो॥