भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ठसाठस / अनूप सेठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <poem> घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार यू...) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अनूप सेठी | |रचनाकार=अनूप सेठी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार | घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 20: | ||
पसीने से चिपचिपाता | पसीने से चिपचिपाता | ||
बुक्का फाड़कर रोने भर की जगह नहीं है बस। | बुक्का फाड़कर रोने भर की जगह नहीं है बस। | ||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
22:35, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार
यूँ शायद बज चुके हैं पौने पाँच
दफ्तरों में हर कोई व्यस्त है अपने लद्धड़पन के बावजूद
बीसियों बरसों से
खड़े खड़े कुढ़ने तक की नहीं है सोहबत
घरों में बहुत हैं झुनझुने
आटे दाल के भरे अधभरे बजबजाते कनस्तर
केलैण्डर से उड़नछू हो रहे दिन महीने बरस
मगन होके हगने तक की नहीं है मोहलत
लगेंगे चश्मे होंगे भर्ती अस्पतालों में सब एक दिन
लोकल ट्रेनों की भीड़ में एकांत है सुलभ
पसीने से चिपचिपाता
बुक्का फाड़कर रोने भर की जगह नहीं है बस।