भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रुख़ और मंज़िल / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...)
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
  
 
जिस ओर चलना सुविधा है
 
जिस ओर चलना सुविधा है
अंतिम पड़ाव अंतहीन पेट है
+
अंतिम पड़ाव  
 +
अंतहीन पेट है
  
  
 
</poem>
 
</poem>

21:54, 8 फ़रवरी 2009 का अवतरण


इस वक्त
अंधड़ है

रुख़ उस ओर है
जिस ओर गहरी लंबी साँसे
खींच रहा है
भारी-भरकम स्वार्थ

टूटने की हद तक
झुक रहे हैं पेड़
बेमौसम झड़ रहे हैं पत्ते

जिस ओर चलना सुविधा है
अंतिम पड़ाव
अंतहीन पेट है