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"कभी यूँ भी आ / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो<br>
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मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर हो<br><br>
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मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो<br><br>
  
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफत भी अता करे<br>
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कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के<br>
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मेरे बाज़ुऔं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी<br>
यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी खत्म अपना सफर न हो<br><br>
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मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के क़रीब आ<br>
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ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी<br>
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, के बिछड़ने का कभी डर हो<br><br>
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ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो<br><br>
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वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो<br><br>
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कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं<br>
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मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो<br><br>
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कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर<br>
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यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो<br><br>
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मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ<br>
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तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो.<br><br>

23:04, 14 मार्च 2008 का अवतरण

कवि: बशीर बद्र

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कभी यूं भी आ मेरी आंख में, कि मेरी नजर को खबर ना हो
मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो

वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो

मेरे बाज़ुऔं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी
ना उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुजर ना हो

ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी
ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो

वो फ़िराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो

कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो

कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर
यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो.