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"आरती बृहस्पति देवता की / आरती" के अवतरणों में अंतर

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जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।
 
जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।
 
छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥
 
छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥
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सब बोलो विष्णु भगवान की जय!
 
सब बोलो विष्णु भगवान की जय!
 
बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय!!
 
बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय!!
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13:20, 30 मई 2014 के समय का अवतरण

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

 
जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥
तुम पुरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
जेठानंद आनंदकर, सो निश्चय पावे॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय!
बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय!!