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"मेघ आए / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये<br> | पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये<br> | ||
− | आँधी चली, धूल भागी | + | आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये<br> |
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br> | बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br> | ||
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क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी<br> | क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी<br> | ||
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’<br> | ‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’<br> | ||
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मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।<br> | मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।<br> |
15:20, 19 मई 2007 का अवतरण
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मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती - गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढ़रके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।