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"कानन दै अँगुरी रहिहौं / रसखान" के अवतरणों में अंतर

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कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।
 
कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।
  
माहिनि तानन सों रसखान, अटा चड़ि गोधन गैहै पै गैहै॥
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मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चढ़ि गोधन गैहै पै गैहै॥
  
 
टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।
 
टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।
  
 
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
 
माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥

07:16, 8 सितम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: रसखान

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कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहै।

मोहिनि तानन सों रसखान, अटा चढ़ि गोधन गैहै पै गैहै॥

टेरी कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहै।

माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहै, न जैहै, न जैहै॥