भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक चाय की चुस्की / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | कवि: [[उमाकांत मालवीय]] | ||
+ | |||
+ | [[Category:कविताएँ]] | ||
+ | [[Category:गीत]] | ||
+ | [[Category:उमाकांत मालवीय]] | ||
+ | |||
+ | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ||
+ | |||
एक चाय की चुस्की | एक चाय की चुस्की | ||
10:13, 27 अगस्त 2006 का अवतरण
कवि: उमाकांत मालवीय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
एक चाय की चुस्की
एक कहकहा
अपना तो इतना सामान ही रहा ।
चुभन और दंशन
पैने यथार्थ के
पग-पग पर घेर रहे
प्रेत स्वार्थ के ।
भीतर ही भीतर
मैं बहुत ही दहा
किंतु कभी भूले से कुछ नहीं कहा ।
एक अदद गंध
एक टेक गीत की
बतरस भीगी संध्या
बातचीत की ।
इन्हीं के भरोसे क्या-क्या नहीं सहा
छू ली है एक नहीं सभी इन्तहा ।
एक कसम जीने की
ढेर उलझने
दोनों गर नहीं रहे
बात क्या बने ।
देखता रहा सब कुछ सामने ढहा
मगर किसी के कभी चरण नहीं गहा ।