"आर्य-भूमि / महावीर प्रसाद द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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रामादि राजा अति कीर्तिमान। | रामादि राजा अति कीर्तिमान। | ||
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जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि , | जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि , | ||
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थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। | थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, | जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, | ||
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स्वदेश का भी अभिमान भारी । | स्वदेश का भी अभिमान भारी । | ||
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जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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हुए प्रजापाल नरेश नाना, | हुए प्रजापाल नरेश नाना, | ||
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प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना । | प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना । | ||
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जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि , | जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि , | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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वीरांगना भारत-भामिली थीं, | वीरांगना भारत-भामिली थीं, | ||
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वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं । | वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं । | ||
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जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि, | जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष, | स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष, | ||
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हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष । | हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष । | ||
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जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान, | स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान, | ||
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जहाँ हुए यत्न सदा महान। | जहाँ हुए यत्न सदा महान। | ||
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जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि, | जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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+ | न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था, | ||
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था। | देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था। | ||
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जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि, | जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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कोई कभी धीर न छोड़ता था, | कोई कभी धीर न छोड़ता था, | ||
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न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था। | न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था। | ||
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जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि, | जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने, | स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने, | ||
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जहाँ सभी ने शर-चाप ताने । | जहाँ सभी ने शर-चाप ताने । | ||
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जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
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अनेक थे वर्ण तथापि सारे | अनेक थे वर्ण तथापि सारे | ||
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थे एकताबद्ध जहाँ हमारे | थे एकताबद्ध जहाँ हमारे | ||
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जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्य भूमि ।। | वही हमारी यह आर्य भूमि ।। | ||
− | 12 | + | '''12 |
थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी, | थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी, | ||
− | + | जहाँ हुए शुर यशोधिकारी । | |
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जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि, | जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | ||
− | 13 | + | '''13 |
दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान, | दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान, | ||
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छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान । | छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान । | ||
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जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि, | जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | ||
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+ | नए नए देश जहाँ अनेक, | ||
+ | जीत गए थे नित एक एक । | ||
जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि, | जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि, | ||
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वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | ||
− | 15 | + | '''15 |
विचार ऐसे जब चित्त आते, | विचार ऐसे जब चित्त आते, | ||
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विषाद पैदा करते, सताते । | विषाद पैदा करते, सताते । | ||
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न क्या कभी देव दया करेंगे ? | न क्या कभी देव दया करेंगे ? | ||
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न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ? | न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ? | ||
− | + | '''’सरस्वती’ के अप्रैल, 1906 के अंक में प्रकाशित |
10:44, 17 मई 2010 का अवतरण
1
जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान, रामादि राजा अति कीर्तिमान। जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि , वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।।
2
जहाँ हुए साधु हा महान् थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
3
जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, स्वदेश का भी अभिमान भारी । जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
4
हुए प्रजापाल नरेश नाना, प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना । जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि , वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
5
वीरांगना भारत-भामिली थीं, वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं । जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
6
स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष, हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष । जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
7
स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान, जहाँ हुए यत्न सदा महान। जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
8
न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था, देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था। जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
9
कोई कभी धीर न छोड़ता था, न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था। जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 10
स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने, जहाँ सभी ने शर-चाप ताने । जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि, वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
11
अनेक थे वर्ण तथापि सारे थे एकताबद्ध जहाँ हमारे जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि, वही हमारी यह आर्य भूमि ।।
12
थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी, जहाँ हुए शुर यशोधिकारी । जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि, वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
13
दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान, छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान । जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि, वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
14
नए नए देश जहाँ अनेक, जीत गए थे नित एक एक । जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि, वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
15
विचार ऐसे जब चित्त आते, विषाद पैदा करते, सताते । न क्या कभी देव दया करेंगे ? न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ?
’सरस्वती’ के अप्रैल, 1906 के अंक में प्रकाशित