भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परिणति / राम विलास शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=राम विलास शर्मा | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | ||
दुख की प्रत्येक अनुभूति में | दुख की प्रत्येक अनुभूति में | ||
16:07, 24 मई 2009 के समय का अवतरण
दुख की प्रत्येक अनुभूति में
बोध करता हूँ कहीं आत्मा है
मूल से सिहरती प्रगाढ़ अनुभूति में
आत्मा की ज्योति में
शून्य है न जाने कहाँ छिपा हुआ
गहन से गहनतर
दुख की सतत अनुभूति में
बोध करता हूँ एक महत्तर आत्मा है
निबिड़ता शून्य की विकास पाती उसी भांति,—
सक्रिय अनंत जलराशि से
कटते हों कूल ज्यों समुद्र के
एक दिन गहनतम इसी अनुभूति में
महत्तम आत्मा की ज्योति यह
विकसित हो पाएगी घिर परिणति महाशून्य में।