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"चार पंक्तियाँ / प्रभाकर माचवे" के अवतरणों में अंतर

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जब दिल ने दिल को जान लिया <br>
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निर्जन की जिज्ञासा है निर्झर की तुतली बोली में <br>
जब अपना-सा सब मान लिया <br>
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विटपों के हैं प्रश्नचिन्ह विहगों की वन्य ठिठोली में <br>
तब ग़ैर-बिराना कौन बचा <br>
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इंगित हैं' कुछ और पूछ लूँ' इन्द्रचाप की रोली में <br>
यदि बचा सिर्फ़ तो मौन बचा ! <br><br><br><br>
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संशय के दो कण लाया हूँ आज ज्ञान की झोली में । <br>

18:55, 31 अगस्त 2006 का अवतरण

कवि: प्रभाकर माचवे

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निर्जन की जिज्ञासा है निर्झर की तुतली बोली में
विटपों के हैं प्रश्नचिन्ह विहगों की वन्य ठिठोली में
इंगित हैं' कुछ और पूछ लूँ' इन्द्रचाप की रोली में
संशय के दो कण लाया हूँ आज ज्ञान की झोली में ।