भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वारिस शाह से / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=चुनी हुई कवितायें / अमृता प्रीतम
 
|संग्रह=चुनी हुई कवितायें / अमृता प्रीतम
 
}}
 
}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 
[[Category:पंजाबी भाषा]]
 
[[Category:पंजाबी भाषा]]
 
<poem>
 
<poem>
 
आज वारिस शाह से कहती हूं
 
आज वारिस शाह से कहती हूं
 
 
अपनी कब्र में से बोलो
 
अपनी कब्र में से बोलो
 
 
और इश्क की किताब का
 
और इश्क की किताब का
 
 
कोई नया वर्क खोलो
 
कोई नया वर्क खोलो
 
 
पंजाब की एक बेटी रोई थी
 
पंजाब की एक बेटी रोई थी
 
 
तूने एक लंबी दास्तान लिखी
 
तूने एक लंबी दास्तान लिखी
 
 
आज लाखों बेटियां रो रही हैं,
 
आज लाखों बेटियां रो रही हैं,
 
 
वारिस शाह तुम से कह रही हैं
 
वारिस शाह तुम से कह रही हैं
 
 
ए दर्दमंदों के दोस्त
 
ए दर्दमंदों के दोस्त
 
 
पंजाब की हालत देखो
 
पंजाब की हालत देखो
 
 
चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं,
 
चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं,
 
 
चिनाव लहू से भरी पड़ी है
 
चिनाव लहू से भरी पड़ी है
 
 
किसी ने पांचों दरियाओं में
 
किसी ने पांचों दरियाओं में
 
 
एक जहर मिला दिया है
 
एक जहर मिला दिया है
 
 
और यही पानी
 
और यही पानी
 
 
धरती को सींचने लगा है
 
धरती को सींचने लगा है
 
 
इस जरखेज धरती से
 
इस जरखेज धरती से
 
 
जहर फूट निकला है
 
जहर फूट निकला है
 
 
देखो, सुर्खी कहां तक आ पंहुंची
 
देखो, सुर्खी कहां तक आ पंहुंची
 
 
और कहर कहां तक आ पहुंचा
 
और कहर कहां तक आ पहुंचा
 
 
फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी
 
फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी
 
 
उसमें हर बांस की बांसुरी
 
उसमें हर बांस की बांसुरी
 
 
जैसे एक नाग बना दी
 
जैसे एक नाग बना दी
 
 
नागों ने लोगों के होंठ डस लिये
 
नागों ने लोगों के होंठ डस लिये
 
 
और डंक बढ़ते चले गये
 
और डंक बढ़ते चले गये
 
 
और देखते देखते पंजाब के
 
और देखते देखते पंजाब के
 
 
सारे अंग काले और नीले पड़ गये
 
सारे अंग काले और नीले पड़ गये
 
 
हर गले से गीत टूट गया
 
हर गले से गीत टूट गया
 
 
हर चरखे का धागा छूट गया
 
हर चरखे का धागा छूट गया
 
 
सहेलियां एक दूसरे से छूट गईं
 
सहेलियां एक दूसरे से छूट गईं
 
 
चरखों की महफिल वीरान हो गई
 
चरखों की महफिल वीरान हो गई
 
 
मल्लाहों ने सारी कश्तियां
 
मल्लाहों ने सारी कश्तियां
 
 
सेज के साथ ही बहा दीं
 
सेज के साथ ही बहा दीं
 
पीपलों ने सारी पेंगें
 
पीपलों ने सारी पेंगें
 
 
टहनियों के साथ तोड़ दीं
 
टहनियों के साथ तोड़ दीं
 
 
जहां प्यार के नगमे गूंजते थे
 
जहां प्यार के नगमे गूंजते थे
 
 
वह बांसुरी जाने कहां खो गई
 
वह बांसुरी जाने कहां खो गई
 
 
और रांझे के सब भाई
 
और रांझे के सब भाई
 
 
बांसुरी बजाना भूल गये
 
बांसुरी बजाना भूल गये
 
 
धरती पर लहू बरसा
 
धरती पर लहू बरसा
 
 
क़ब्रें टपकने लगीं
 
क़ब्रें टपकने लगीं
 
 
और प्रीत की शहजादियां
 
और प्रीत की शहजादियां
 
 
मजारों में रोने लगीं
 
मजारों में रोने लगीं
 
 
आज सब कैदी बन गये
 
आज सब कैदी बन गये
 
 
हुस्न इश्क के चोर
 
हुस्न इश्क के चोर
 
 
मैं कहां से ढूंढ के लाऊं
 
मैं कहां से ढूंढ के लाऊं
 
 
एक वारिस शाह और..
 
एक वारिस शाह और..
 
</poem>
 
</poem>

21:59, 24 अगस्त 2011 का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अमृता प्रीतम  » संग्रह: चुनी हुई कवितायें
»  वारिस शाह से

आज वारिस शाह से कहती हूं
अपनी कब्र में से बोलो
और इश्क की किताब का
कोई नया वर्क खोलो
पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने एक लंबी दास्तान लिखी
आज लाखों बेटियां रो रही हैं,
वारिस शाह तुम से कह रही हैं
ए दर्दमंदों के दोस्त
पंजाब की हालत देखो
चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं,
चिनाव लहू से भरी पड़ी है
किसी ने पांचों दरियाओं में
एक जहर मिला दिया है
और यही पानी
धरती को सींचने लगा है
इस जरखेज धरती से
जहर फूट निकला है
देखो, सुर्खी कहां तक आ पंहुंची
और कहर कहां तक आ पहुंचा
फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी
उसमें हर बांस की बांसुरी
जैसे एक नाग बना दी
नागों ने लोगों के होंठ डस लिये
और डंक बढ़ते चले गये
और देखते देखते पंजाब के
सारे अंग काले और नीले पड़ गये
हर गले से गीत टूट गया
हर चरखे का धागा छूट गया
सहेलियां एक दूसरे से छूट गईं
चरखों की महफिल वीरान हो गई
मल्लाहों ने सारी कश्तियां
सेज के साथ ही बहा दीं
पीपलों ने सारी पेंगें
टहनियों के साथ तोड़ दीं
जहां प्यार के नगमे गूंजते थे
वह बांसुरी जाने कहां खो गई
और रांझे के सब भाई
बांसुरी बजाना भूल गये
धरती पर लहू बरसा
क़ब्रें टपकने लगीं
और प्रीत की शहजादियां
मजारों में रोने लगीं
आज सब कैदी बन गये
हुस्न इश्क के चोर
मैं कहां से ढूंढ के लाऊं
एक वारिस शाह और..