भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कार्ल मार्क्स / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री | |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
कार्ल मार्क्स | कार्ल मार्क्स | ||
''‘नीस्त पैग़म्बर व लेकिन दर बग़ल दारद किताब’''<ref>वह पैग़म्बर नहीं लेकिन साहिब-ए-किताब है</ref> | ''‘नीस्त पैग़म्बर व लेकिन दर बग़ल दारद किताब’''<ref>वह पैग़म्बर नहीं लेकिन साहिब-ए-किताब है</ref> | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 18: | ||
वह जलवः जिसकी तमन्ना भी चश्मे-आदम को | वह जलवः जिसकी तमन्ना भी चश्मे-आदम को | ||
वह जलवः चश्मे-तमन्ना में बेनक़ाब है आज | वह जलवः चश्मे-तमन्ना में बेनक़ाब है आज | ||
− | |||
− | |||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} | ||
</poem> | </poem> |
22:41, 23 मई 2009 का अवतरण
कार्ल मार्क्स
‘नीस्त पैग़म्बर व लेकिन दर बग़ल दारद किताब’<ref>वह पैग़म्बर नहीं लेकिन साहिब-ए-किताब है</ref>
-जामी
वह आग मार्क्स के सीने में जो हुई रौशन
वह आग सीन-ए-इन्साँ में आफ़ताब है आज
यह आग जुम्बिशे-लब जुम्बिशे-क़लम भी बनी
हर एक हर्फ़ नये अह्द की किताब है आज
ज़मानागीरो-खुदआगाहो-सरकशो-बेबाक<ref>सार्वभौमिक, आत्मचेतस,स्वच्छन्द और निर्भीक</ref>
सुरूरे-नग़मा-ओ-सरमस्ती-ए-शबाब<ref>यौवन के आह्लाद का उन्माद</ref> है आज
हर एक आँख में रक़्साँ है कोई मंज़रे-नौ
हर एक दिल में कोई दिलनवाज़ ख़्वाब है आज
वह जलवः जिसकी तमन्ना भी चश्मे-आदम को
वह जलवः चश्मे-तमन्ना में बेनक़ाब है आज
शब्दार्थ
<references/>