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"ज़माना आ गया / बलबीर सिंह 'रंग'" के अवतरणों में अंतर

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ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आये ।
 
ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आये ।
 
 
जवानी आ गई तनहाइयों तक तुम नहीं आये ।।   
 
जवानी आ गई तनहाइयों तक तुम नहीं आये ।।   
 
  
 
धरा पर थम गई आँधी, गगन में काँपती बिजली,
 
धरा पर थम गई आँधी, गगन में काँपती बिजली,
 
 
घटाएँ आ गईं अमराइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
घटाएँ आ गईं अमराइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
  
 
नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समंदर को,
 
नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समंदर को,
 
 
सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
  
 
किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
 
किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
 
 
निगाहें आ गईं परछाइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
निगाहें आ गईं परछाइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
  
 
समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का,
 
समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का,
 
 
उदासी आ गई अंगड़ाइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
उदासी आ गई अंगड़ाइयों तक तुम नहीं आये ।   
 
  
 
न शम्म'अ है न परवाने हैं ये क्या 'रंग' है महफ़िल,
 
न शम्म'अ है न परवाने हैं ये क्या 'रंग' है महफ़िल,
 
 
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आये ।
 
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आये ।
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14:59, 22 अगस्त 2009 का अवतरण

ज़माना आ गया रुसवाइयों तक तुम नहीं आये ।
जवानी आ गई तनहाइयों तक तुम नहीं आये ।।

धरा पर थम गई आँधी, गगन में काँपती बिजली,
घटाएँ आ गईं अमराइयों तक तुम नहीं आये ।

नदी के हाथ निर्झर की मिली पाती समंदर को,
सतह भी आ गई गहराइयों तक तुम नहीं आये ।

किसी को देखते ही आपका आभास होता है,
निगाहें आ गईं परछाइयों तक तुम नहीं आये ।

समापन हो गया नभ में सितारों की सभाओं का,
उदासी आ गई अंगड़ाइयों तक तुम नहीं आये ।

न शम्म'अ है न परवाने हैं ये क्या 'रंग' है महफ़िल,
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आये ।