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"जब भी तन्हाई से घबरा के / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह <br>
 
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तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं <br><br>
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तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं <br><br>
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ख़ार = thorn

23:30, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण

जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं

हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं

ख़ार = thorn