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"चुका भी हूँ मैं नहीं / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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चुका भी हूँ मैं नहीं | चुका भी हूँ मैं नहीं | ||
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कहाँ किया मैनें प्रेम | कहाँ किया मैनें प्रेम | ||
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अभी । | अभी । | ||
जब करूँगा प्रेम | जब करूँगा प्रेम | ||
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पिघल उठेंगे | पिघल उठेंगे | ||
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युगों के भूधर | युगों के भूधर | ||
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उफन उठेंगे | उफन उठेंगे | ||
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सात सागर । | सात सागर । | ||
किंतु मैं हूँ मौन आज | किंतु मैं हूँ मौन आज | ||
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कहाँ सजे मैनें साज | कहाँ सजे मैनें साज | ||
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अभी । | अभी । | ||
सरल से भी गूढ़, गूढ़तर | सरल से भी गूढ़, गूढ़तर | ||
− | + | तत्त्व निकलेंगे | |
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अमित विषमय | अमित विषमय | ||
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जब मथेगा प्रेम सागर | जब मथेगा प्रेम सागर | ||
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हृदय । | हृदय । | ||
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निकटतम सबकी | निकटतम सबकी | ||
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अपर शौर्यों की | अपर शौर्यों की | ||
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तुम | तुम | ||
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तब बनोगी एक | तब बनोगी एक | ||
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गहन मायामय | गहन मायामय | ||
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प्राप्त सुख | प्राप्त सुख | ||
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तुम बनोगी तब | तुम बनोगी तब | ||
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प्राप्य जय ! | प्राप्य जय ! | ||
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22:08, 17 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
चुका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैनें प्रेम
अभी ।
जब करूँगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर ।
किंतु मैं हूँ मौन आज
कहाँ सजे मैनें साज
अभी ।
सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
तत्त्व निकलेंगे
अमित विषमय
जब मथेगा प्रेम सागर
हृदय ।
निकटतम सबकी
अपर शौर्यों की
तुम
तब बनोगी एक
गहन मायामय
प्राप्त सुख
तुम बनोगी तब
प्राप्य जय !
( १९४१ में लिखित )