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"वह फूल नहीं / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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अपरिचित चेहरे पर परिचित मुस्कान !
 
अपरिचित चेहरे पर परिचित मुस्कान !
 
 
जी करता है
 
जी करता है
 
 
सजा लूँ अपने गुलदान में
 
सजा लूँ अपने गुलदान में
 
 
इन अज़नबी फूलों को ....
 
इन अज़नबी फूलों को ....
 
 
कसे बदन की लचक
 
कसे बदन की लचक
 
 
दूर उड़ती पखेरू-पंखों-सी शरारती आँखें
 
दूर उड़ती पखेरू-पंखों-सी शरारती आँखें
 
 
देवस्थान के लिपे प्रांगन-सी शीतल भंगिमा
 
देवस्थान के लिपे प्रांगन-सी शीतल भंगिमा
 
 
न कोई भय
 
न कोई भय
 
 
और न संकोच
 
और न संकोच
 
 
निरंतर स्नेह की पीत शोभा
 
निरंतर स्नेह की पीत शोभा
 
 
किंतु गतिमान
 
किंतु गतिमान
 
 
मैंने देखा
 
मैंने देखा
 
 
सहज ही टपकते मधु
 
सहज ही टपकते मधु
 
 
फूलों से
 
फूलों से
 
 
स्वायत्त अभिलाषा के आस-पास मैंने
 
स्वायत्त अभिलाषा के आस-पास मैंने
 
 
फूलों से चिनगारियाँ निकलते देखा
 
फूलों से चिनगारियाँ निकलते देखा
 
 
बदल लिया विचार
 
बदल लिया विचार
 
 
गुलदान में सजाने का
 
गुलदान में सजाने का
 
 
एक कविता ही बहुत है
 
एक कविता ही बहुत है
 
 
जटिल आकाँक्षाओं के रूबरू
 
जटिल आकाँक्षाओं के रूबरू
 
 
एक बाज़ार है
 
एक बाज़ार है
 
 
सर्पिल कुटिल रास्ते है
 
सर्पिल कुटिल रास्ते है
 
 
स्वप्निल मेघ छाए है
 
स्वप्निल मेघ छाए है
 
 
दरअसल,
 
दरअसल,
 
 
गलती हुई है मुझसे ही
 
गलती हुई है मुझसे ही
 
 
वह अजनबी फूल नहीं  
 
वह अजनबी फूल नहीं  
 
 
ब्रैंडेड सामान है कोई.
 
ब्रैंडेड सामान है कोई.
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23:41, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

अपरिचित चेहरे पर परिचित मुस्कान !
जी करता है
सजा लूँ अपने गुलदान में
इन अज़नबी फूलों को ....
कसे बदन की लचक
दूर उड़ती पखेरू-पंखों-सी शरारती आँखें
देवस्थान के लिपे प्रांगन-सी शीतल भंगिमा
न कोई भय
और न संकोच
निरंतर स्नेह की पीत शोभा
किंतु गतिमान
मैंने देखा
सहज ही टपकते मधु
फूलों से
स्वायत्त अभिलाषा के आस-पास मैंने
फूलों से चिनगारियाँ निकलते देखा
बदल लिया विचार
गुलदान में सजाने का
एक कविता ही बहुत है
जटिल आकाँक्षाओं के रूबरू
एक बाज़ार है
सर्पिल कुटिल रास्ते है
स्वप्निल मेघ छाए है
दरअसल,
गलती हुई है मुझसे ही
वह अजनबी फूल नहीं
ब्रैंडेड सामान है कोई.