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"कविता, ओ कविता ! / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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कविता , ओ कविता!
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कविता, ओ कविता!
 
मुझे मालूम है कि तू न तो मेरी प्रेमिका है
 
मुझे मालूम है कि तू न तो मेरी प्रेमिका है
 
 
न पत्नी या रखैल
 
न पत्नी या रखैल
 
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माँ, बहन या बेटी ...
माँ, बहन या बेटी .........
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तू तो कुछ भी नहीं है मेरी
 
तू तो कुछ भी नहीं है मेरी
 
 
मुझे तो यहाँ तक भी नहीं पता है
 
मुझे तो यहाँ तक भी नहीं पता है
 
 
कि तुझे मेरे होने का अहसास है भी या नहीं
 
कि तुझे मेरे होने का अहसास है भी या नहीं
 
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फिर भी, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
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कि तू क्या सोचती है मेरे बारे में
 
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या कुछ सोचती भी है या नहीं
 
या कुछ सोचती भी है या नहीं
 
 
लेकिन जब कोई मनचला करता है शरारत तेरे साथ
 
लेकिन जब कोई मनचला करता है शरारत तेरे साथ
 
 
मेरा जी जलता है
 
मेरा जी जलता है
 
 
जब कोई गढ़ता है सिद्धांत
 
जब कोई गढ़ता है सिद्धांत
 
 
कि नहीं है जरुरत दुनिया को कविता की
 
कि नहीं है जरुरत दुनिया को कविता की
 
 
तो जी करता है
 
तो जी करता है
 
 
बजाऊँ उसके कान के नीचे जोर का तमाचा
 
बजाऊँ उसके कान के नीचे जोर का तमाचा
 
 
ओ कविता !
 
ओ कविता !
 
 
तेरे बगैर दुनिया में
 
तेरे बगैर दुनिया में
 
 
आदमजात इन्सान रहेंगे
 
आदमजात इन्सान रहेंगे
 
 
प्यार को अलगा पाएगा इन्सान
 
प्यार को अलगा पाएगा इन्सान
 
 
पशुवृत्ति सम्भोग से
 
पशुवृत्ति सम्भोग से
 
 
शब्दों की सर्जनात्मिका शक्ति बची रह पायेगी तेरे बगैर
 
शब्दों की सर्जनात्मिका शक्ति बची रह पायेगी तेरे बगैर
 
 
ओ मेरी कविता रानी!
 
ओ मेरी कविता रानी!
 
 
बिना कविता के सारे आदमजाद हैवान नहीं हो जायेंगे
 
बिना कविता के सारे आदमजाद हैवान नहीं हो जायेंगे
 
 
मैं नहीं करता इंकार
 
मैं नहीं करता इंकार
 
 
कि बदले हैं मायने इंसानियत के
 
कि बदले हैं मायने इंसानियत के
 
 
बाजार ने बना दिया हर चीज को पण्य
 
बाजार ने बना दिया हर चीज को पण्य
 
 
तुम्हे भी दल्ले किस्म के हास्य-कवियों ने
 
तुम्हे भी दल्ले किस्म के हास्य-कवियों ने
 
 
बना दिया है सस्ता नचनिया
 
बना दिया है सस्ता नचनिया
 
 
लोग खोजते हैं कविताओं में गुदगुदी और उत्तेजना
 
लोग खोजते हैं कविताओं में गुदगुदी और उत्तेजना
 
 
तो भी ओ कविता,
 
तो भी ओ कविता,
 
 
मैं करता भी हूँ
 
मैं करता भी हूँ
 
 
और दिलाता भी हूँ तुम्हे यकीन
 
और दिलाता भी हूँ तुम्हे यकीन
 
 
कि प्यार और कविता का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता
 
कि प्यार और कविता का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता
 
 
चाहे सटोरिये, चटोरिये, पचोरिये -
 
चाहे सटोरिये, चटोरिये, पचोरिये -
 
 
लगा लें कितना भी जोर
 
लगा लें कितना भी जोर
 
 
मुझे अहसास है
 
मुझे अहसास है
 
 
कि जिस भी दिल में साँस लेती होगी इंसानियत
 
कि जिस भी दिल में साँस लेती होगी इंसानियत
 
 
उस दिल में तुम्हारा कमरा होगा ज़रूर ।
 
उस दिल में तुम्हारा कमरा होगा ज़रूर ।
 
 
कविता, ओ कविता !
 
कविता, ओ कविता !
 
 
एक बार ज़रा मुस्कुरा दो जी खोल कर ।
 
एक बार ज़रा मुस्कुरा दो जी खोल कर ।
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22:41, 18 जून 2009 का अवतरण

कविता, ओ कविता!
मुझे मालूम है कि तू न तो मेरी प्रेमिका है
न पत्नी या रखैल
माँ, बहन या बेटी ...
तू तो कुछ भी नहीं है मेरी
मुझे तो यहाँ तक भी नहीं पता है
कि तुझे मेरे होने का अहसास है भी या नहीं
फिर भी, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तू क्या सोचती है मेरे बारे में
या कुछ सोचती भी है या नहीं
लेकिन जब कोई मनचला करता है शरारत तेरे साथ
मेरा जी जलता है
जब कोई गढ़ता है सिद्धांत
कि नहीं है जरुरत दुनिया को कविता की
तो जी करता है
बजाऊँ उसके कान के नीचे जोर का तमाचा
ओ कविता !
तेरे बगैर दुनिया में
आदमजात इन्सान रहेंगे
प्यार को अलगा पाएगा इन्सान
पशुवृत्ति सम्भोग से
शब्दों की सर्जनात्मिका शक्ति बची रह पायेगी तेरे बगैर
ओ मेरी कविता रानी!
बिना कविता के सारे आदमजाद हैवान नहीं हो जायेंगे
मैं नहीं करता इंकार
कि बदले हैं मायने इंसानियत के
बाजार ने बना दिया हर चीज को पण्य
तुम्हे भी दल्ले किस्म के हास्य-कवियों ने
बना दिया है सस्ता नचनिया
लोग खोजते हैं कविताओं में गुदगुदी और उत्तेजना
तो भी ओ कविता,
मैं करता भी हूँ
और दिलाता भी हूँ तुम्हे यकीन
कि प्यार और कविता का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता
चाहे सटोरिये, चटोरिये, पचोरिये -
लगा लें कितना भी जोर
मुझे अहसास है
कि जिस भी दिल में साँस लेती होगी इंसानियत
उस दिल में तुम्हारा कमरा होगा ज़रूर ।
कविता, ओ कविता !
एक बार ज़रा मुस्कुरा दो जी खोल कर ।