भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चरागे़जीस्त बुझा दिल से इक धुआँ निकला / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला। लगा के आग मे...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला। | चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला। | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 21: | ||
+ | ज़माना फिर गया चलने लगी हवा उलटी। | ||
+ | चमन को आग लगाके जो बाग़बाँ निकला॥ | ||
− | |||
+ | कलामे ‘यास, से दुनिया में फिर इक आग लगी। | ||
− | + | यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥ | |
− | |||
− | |||
− | + | ||
+ | {{KKMeaning}} |
10:27, 10 जुलाई 2009 का अवतरण
चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।
लगा के आग मेरे घर से मेहमाँ निकला॥
तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खडे़ हुए आखिर।
तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥
लहू लगा के शहीदों में हो गए दाख़िल।
हविस तो निकली मगर हौसला कहाँ निकला॥
लगा है दिल को अब अंजामेकार का खटका।
बहारे-गुल से भी इक पहलुए-ख़िज़ाँ निकला॥
ज़माना फिर गया चलने लगी हवा उलटी।
चमन को आग लगाके जो बाग़बाँ निकला॥
कलामे ‘यास, से दुनिया में फिर इक आग लगी।
यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥
शब्दार्थ
<references/>