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"जब कभी मन की बात आती है / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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वासना पात-पात आती है।
 
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22:55, 30 जुलाई 2009 का अवतरण

जब कभी मन की बात आती है आँसुओं की सौग़ात आती है

तन जब उलझेंगे रुह काँपेगी जाम टूटेंगे रात आती है

आपसी रंजिशों के चलते ही गर्दिशे कायनात आती है

साथ सामान मौत का लेकर
फिर जगत में हयात आती है

सूख जाता है तन समुन्दर का
तब बरसने की बात आती है

काट कितने भी मोह के बंधन
भावना रोज़ कात आती है

इस शुमारी पे गौर कर फिर से
इसमें तेरी भी ज़ात आती है

रोज़ शह के लिए उलझते हैं
रोज़ ख़ुद को ही मात आती है

प्रेम यदि डार-डार होता है
वासना पात-पात आती है।