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"कुंठा / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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बाहर आने दूँ<br>
 
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16:09, 26 नवम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: दुष्यंत कुमार

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मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों सी
ताने-बाने बुनती,
तड़फ तड़फकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ' वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा – कुँवारी कुंती!

बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा ।