भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब न रहे वो रूख / नईम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार= नईम | ||
+ | }} | ||
[[Category:गीत]] | [[Category:गीत]] | ||
− | |||
− | |||
− | |||
अब न रहे वो रूख कि जिन पर, | अब न रहे वो रूख कि जिन पर, |
19:30, 24 जून 2009 का अवतरण
अब न रहे वो रूख कि जिन पर,
पत्ते होते थे।
फूलों, कोंपल आंखें,
शहद के छत्ते होते थे।
उखड़े-उखड़े खड़े अकालों आए नहीं झोंके
आते थे जो काम हमारे मौके बेमौके
जिनकी छांव बिलमकर हम तुम
सपने बोते थे।
क्या होंगे पत्ते फूलों औ' फुनगी शाखों से?
मौन प्रार्थनारत हैं वो मिलने को राखों से।
रहे नहीं अब रैन-बसेरा
मैना तोते के।
आंखों के बीहड़ सूखे ने सुखा दिया जड़ से,
इस सामान्यों की क्या तुलना पीपल औ बड़ से
नहीं रहे कंधे जिनसे लग के
दुखड़े रोते थे
अब न रहे वो रूख कि जिन पर
पत्ते होते थे