भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुख भी सुख का बन्धु बना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |रचनाकाल=7 दिसम्बर, 19…)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|रचनाकाल=7 दिसम्बर, 1952
+
|संग्रह=आराधना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
ऊपर उपवन फल लाया है,
 
ऊपर उपवन फल लाया है,
 
छल से छुटकर मन अपना।
 
छल से छुटकर मन अपना।
 +
 +
रचनाकाल=7 दिसम्बर, 1952
 
</poem>
 
</poem>

21:58, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण

दुख भी सुख का बन्धु बना
पहले की बदली रचना।

परम प्रेयसी आज श्रेयसी,
भीति अचानक गीति गेय की,
हेय हुई जो उपादेय थी,
कठिन, कमल-कोमल वचना।

ऊँचा स्तर नीचे आया है,
तरु के तल फैली छाया है,
ऊपर उपवन फल लाया है,
छल से छुटकर मन अपना।

रचनाकाल=7 दिसम्बर, 1952