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"दुख भी सुख का बन्धु बना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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21:58, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण
दुख भी सुख का बन्धु बना
पहले की बदली रचना।
परम प्रेयसी आज श्रेयसी,
भीति अचानक गीति गेय की,
हेय हुई जो उपादेय थी,
कठिन, कमल-कोमल वचना।
ऊँचा स्तर नीचे आया है,
तरु के तल फैली छाया है,
ऊपर उपवन फल लाया है,
छल से छुटकर मन अपना।
रचनाकाल=7 दिसम्बर, 1952