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मनुष्यता / मैथिलीशरण गुप्त

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विचार लो कि मत्र्य मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸
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