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"कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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09:21, 27 अप्रैल 2013 का अवतरण

प्रकृति बदलती छण-छण देखो, बदल रहे अणु, कण-कण देखो| तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो | भाग्य वाद पर अड़े हुए हो|

छोड़ो मित्र ! पुरानी डफली, जीवन में परिवर्तन लाओ | परंपरा से ऊंचे उठ कर, कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

जब तक घर मे धन संपति हो, बने रहो प्रिय आज्ञाकारी | पढो, लिखो, शादी करवा लो , फिर मानो यह बात हमारी |

माता पिता से काट कनेक्शन, अपना दड़बा अलग बसाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

करो प्रार्थना, हे प्रभु हमको, पैसे की है सख़्त ज़रूरत | अर्थ समस्या हल हो जाए, शीघ्र निकालो ऐसी सूरत |

हिन्दी के हिमायती बन कर, संस्थाओं से नेह जोड़िये | किंतु आपसी बातचीत में, अंग्रेजी की टांग तोड़िये |

इसे प्रयोगवाद कहते हैं, समझो गहराई में जाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

कवि बनने की इच्छा हो तो, यह भी कला बहुत मामूली | नुस्खा बतलाता हूँ, लिख लो, कविता क्या है, गाजर मूली |

कोश खोल कर रख लो आगे, क्लिष्ट शब्द उसमें से चुन लो| उन शब्दों का जाल बिछा कर, चाहो जैसी कविता बुन लो |

श्रोता जिसका अर्थ समझ लें, वह तो तुकबंदी है भाई | जिसे स्वयं कवि समझ न पाए, वह कविता है सबसे हाई |

इसी युक्ती से बनो महाकवि, उसे "नई कविता" बतलाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

चलते चलते मेन रोड पर, फिल्मी गाने गा सकते हो | चौराहे पर खड़े खड़े तुम, चाट पकोड़ी खा सकते हो |

बड़े चलो उन्नति के पथ पर, रोक सके किस का बल बूता? यों प्रसिद्ध हो जाओ जैसे, भारत में बाटा का जूता |

नई सभ्यता, नई संस्कृति, के नित चमत्कार दिखलाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ |

पिकनिक का जब मूड बने तो, ताजमहल पर जा सकते हो | शरद-पूर्णिमा दिखलाने को, 'उन्हें' साथ ले जा सकते हो |

वे देखें जिस समय चंद्रमा, तब तुम निरखो सुघर चाँदनी | फिर दोनों मिल कर के गाओ, मधुर स्वरों में मधुर रागिनी | ( तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी ..)

आलू छोला, कोका-कोला, 'उनका' भोग लगा कर पाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ|