"जय जगदीश हरे / आरती" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAarti |रचनाकार= }}<poem> जय जगदीश हरे प्रभु ! जय जगदीश हरे ! मायातीत, मह…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{ | + | {{KKDharmikRachna}} |
− | + | {{KKCatArti}} | |
− | }}<poem> | + | <poem> |
− | जय जगदीश हरे प्रभु ! जय जगदीश हरे ! | + | जय जगदीश हरे प्रभु! जय जगदीश हरे! |
− | मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि | + | मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि परे॥टेक॥ |
− | आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, | + | आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी। |
− | अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति- | + | अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति-राशी॥१॥ जय० |
− | अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, | + | अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी। |
− | सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, | + | सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, सत्ताधारी॥२॥ जय० |
− | विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, | + | विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, शक्तिरूपा। |
− | विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग | + | विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग भूपा॥३॥ जय० |
− | माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद | + | माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद भर्ता। |
− | विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक- | + | विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक-संहर्ता॥४॥ जय० |
− | साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण | + | साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो। |
− | केवल काल कलानिधि, कालातीत | + | केवल काल कलानिधि, कालातीत विभो॥५॥ जय० |
− | राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत- | + | राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर। |
− | मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव | + | मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव नटनागर॥६॥ जय० |
− | सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि | + | सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि जन। |
− | प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन- | + | प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन-मन॥७॥ जय० |
− | आश्रय-दान दयार्णव ! हम सबको | + | आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजे। |
− | पाप-ताप हर हरि ! सब, निज-जन कर | + | पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजे॥८॥ जय० |
</poem> | </poem> |
20:43, 29 मई 2014 के समय का अवतरण
जय जगदीश हरे प्रभु! जय जगदीश हरे!
मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि परे॥टेक॥
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति-राशी॥१॥ जय०
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, सत्ताधारी॥२॥ जय०
विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, शक्तिरूपा।
विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग भूपा॥३॥ जय०
माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद भर्ता।
विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक-संहर्ता॥४॥ जय०
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल काल कलानिधि, कालातीत विभो॥५॥ जय०
राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव नटनागर॥६॥ जय०
सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि जन।
प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन-मन॥७॥ जय०
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजे।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजे॥८॥ जय०