"कुछ समझा आपने / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
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वक्तव्य दिया सूत्रधार ने | वक्तव्य दिया सूत्रधार ने | ||
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पर सूत्रधार का वक्तव्य नहीं | पर सूत्रधार का वक्तव्य नहीं | ||
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ध्यान दिया आपने | ध्यान दिया आपने | ||
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वहीं कहीं तो नहीं रह गए | वहीं कहीं तो नहीं रह गए | ||
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चिपके हुए कुर्सी के हत्थों के साथ | चिपके हुए कुर्सी के हत्थों के साथ | ||
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या पाँव | या पाँव | ||
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या आँखें | या आँखें | ||
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या सिर | या सिर | ||
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वहीं कहीं हवा में घुले | वहीं कहीं हवा में घुले | ||
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कुछ समझा आपने ? | कुछ समझा आपने ? | ||
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00:53, 7 नवम्बर 2009 का अवतरण
कुछ देखा आपने
हाल में अन्धेरा हुआ
और मंच आलोकित हो उठा
कुछ सुना आपने
हाल में ख़ामोशी हुई
सूत्रधार अपना वक्तव्य देने लगा
और ख़ामोशी सन्नाटे में बदल गई
कुछ सोचा आपने
कि वक्तव्य देने के लिए
अन्धेरा और ख़ामोशी
कितनी ज़रूरी हैं।
ग़फलत में न रहें
सावधान होकर सोचें
आपको अन्धेरे में डालना
और ख़ामोशी से बांधना
कितना वाजिब है
कितना मुनासिब।
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
संगीत की लय
और पाँवों की ताल के साथ
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
गौर किया आपने
पूरा नाटक ख़त्म हो गया
पर सूत्रधार का वक्तव्य नहीं
देखा आपने
प्रकाश ने फिर फैलकर आपको
अपनी बाँहों में भर लिया
आपने भी भर लिया
प्रकाश को
अपनी आत्मा में
चल दिए दर्शक-दीर्घा से बाहर
वक्तव्य को हनुमान चालीसा
बनाकर
ध्यान दिया आपने
कि आपके हाथ
वहीं कहीं तो नहीं रह गए
चिपके हुए कुर्सी के हत्थों के साथ
या पाँव
धँसे हुए फर्श में
या आँखें
या सिर
वहीं कहीं हवा में घुले
सूत्रधार के वक्तव्य के साथ।
कुछ समझा आपने ?