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"मैं कब से गोश बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी
 
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गोश-बर-आवाज़ = उम्मीद में, काकुल = लटें

07:56, 23 फ़रवरी 2010 का अवतरण

मैं कब से गोश-बर-आवाज़ हूँ पुकारो भी
ज़मीं पर यह सितारे कभी उतारो भी

मेरी गय्यूर उमंगो, शबाब फानी है
गुरूर-ए-इश्क़ का देरीना खेल हारो भी

भटक रहा है धुन्धल्कों में कारवान-ए-ख़याल
बस अब खुदा के लिए काकुलें संवारो भी

मेरी तलाश की मेराज हो तुम्हीं लेकिन
नकाब उठाओ, निशान-ए-सफ़र उभारो भी

यह काएनात, अजल से सुपुर्द-ए-इन्सां है
मगर नदीम तुम इस बोझ को सहारो भी

गोश-बर-आवाज़ = उम्मीद में, काकुल = लटें