भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज है, कल हुई / उर्मिलेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[Category:उर्मिलेश]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:ग़ज़ल]]
+
|रचनाकार=उर्मिलेश
{{KKSandarbh
+
}}  
|लेखक=उर्मिलेश
+
|पुस्तक=
+
|प्रकाशक=
+
|वर्ष=
+
|पृष्ठ=
+
}}
+
 
+
 
आज है, कल हुई, हुई, न हुई
 
आज है, कल हुई, हुई, न हुई
  

16:16, 8 मई 2009 का अवतरण

आज है, कल हुई, हुई, न हुई

छांव हर पल हुई, हुई, न हुई


एक पहेली है ज़िंदगी अपनी

क्या पता हल हुई, हुई, न हुई


देह का फ़लसफ़ा बताता है

कल ये संदल हुई, हुई, न हुई


जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है

उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई


ये नुमाइश तो चार दिन की है

फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई


मानकर घास रौंद मत इसको

कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई


जितना जी चाहे उतनी पी ले तू

फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई