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"जय वृहस्पति देवा / आरती" के अवतरणों में अंतर
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− | तुम पूरण परमात्मा, तुम | + | तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। |
− | जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके | + | जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥ |
− | चरणामृत निज निर्मल, सब पातक | + | चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता। |
− | सकल मनोरथ दायक, कृपा करो | + | सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥ |
− | तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण | + | तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े। |
− | प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार | + | प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े॥ |
− | दीनदयाल दयानिधि, भक्तन | + | दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी। |
− | पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन | + | पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥ |
− | सकल मनोरथ दायक, सब संशय | + | सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो। |
− | विषय विकार मिटाओ, संतन | + | विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥ |
− | जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित | + | जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे। |
− | जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय | + | जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे॥ |
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18:26, 29 मई 2014 के समय का अवतरण
जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे॥