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"आँगन गायब हो गया / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया
 
घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया
  

17:14, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: कैलाश गौतम

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घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया

शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया।


त्यौहारों का गला दबाया

बदसूरत महँगाई ने

आँख मिचोली हँसी ठिठोली

छीना है तन्हाई ने

फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया।


शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके

गाँव अभागे दौड़ पड़े

रंगों की परिभाषा पढ़ने

कच्चे धागे दौड़ पड़े

चूसा खून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया।


नींद हमारी खोयी-खोयी

गीत हमारे रूठे हैं

रिश्ते नाते बर्तन जैसे

घर में टूटे-फूटे हैं

आँख भरी है गोकुल की वृंदावन ग़ायब हो गया।।