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− | '''(एक)''' | + | '''(एक)''' |
− | बारिशों के पल | + | बारिशों के पल |
− | नया | + | नया |
− | जादू जगाते हैं। | + | जादू जगाते हैं। |
− | तितलियाँ | + | तितलियाँ |
− | लेकर उड़ीं- | + | लेकर उड़ीं- |
− | संयम हवाओं में, | + | संयम हवाओं में, |
− | खिंच गए | + | खिंच गए |
− | सौ-सौ धनुष- | + | सौ-सौ धनुष- |
− | दृष्टि, दिशाओं में, | + | दृष्टि, दिशाओं में, |
− | जुगनुओं से | + | जुगनुओं से |
− | याद के | + | याद के |
− | खण्डहर सजाते हैं। | + | खण्डहर सजाते हैं। |
− | गंध बनकर | + | गंध बनकर |
− | डोलती- | + | डोलती- |
− | काया गुलाबों की, | + | काया गुलाबों की, |
− | पंक्तियाँ | + | पंक्तियाँ |
− | जीवित हुई- | + | जीवित हुई- |
− | जैसे किताबों की, | + | जैसे किताबों की, |
− | गाछ-भी | + | गाछ-भी |
− | यह देखकर | + | यह देखकर |
− | ताली बजाते हैं। | + | ताली बजाते हैं। |
− | '''(दो)''' | + | '''(दो)''' |
− | रंग | + | रंग |
− | खुशबू-घटा | + | खुशबू-घटा |
− | क्या नहीं आजकल। | + | क्या नहीं आजकल। |
− | रैलियाँ | + | रैलियाँ |
− | जुगनुओं की- | + | जुगनुओं की- |
− | निकलने लगीं, | + | निकलने लगीं, |
− | हर दिशा | + | हर दिशा |
− | वस्त्र अपने- | + | वस्त्र अपने- |
− | बदलने लगीं, | + | बदलने लगीं, |
− | सूर | + | सूर |
− | उलझी जटा | + | उलझी जटा |
− | क्या नहीं आजकल। | + | क्या नहीं आजकल। |
− | द्वार तक हिम-हवा- | + | द्वार तक हिम-हवा- |
− | थरथराते हुए, | + | थरथराते हुए, |
− | आ-गयी | + | आ-गयी |
− | गीत-गोविन्द- | + | गीत-गोविन्द- |
− | गाते हुए, | + | गाते हुए, |
− | छंद | + | छंद |
− | धनुयी छटा | + | धनुयी छटा |
− | क्या नहीं आजकल।< | + | क्या नहीं आजकल। |
+ | <poem> |
20:09, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दो शब्द चित्र
(एक)
बारिशों के पल
नया
जादू जगाते हैं।
तितलियाँ
लेकर उड़ीं-
संयम हवाओं में,
खिंच गए
सौ-सौ धनुष-
दृष्टि, दिशाओं में,
जुगनुओं से
याद के
खण्डहर सजाते हैं।
गंध बनकर
डोलती-
काया गुलाबों की,
पंक्तियाँ
जीवित हुई-
जैसे किताबों की,
गाछ-भी
यह देखकर
ताली बजाते हैं।
(दो)
रंग
खुशबू-घटा
क्या नहीं आजकल।
रैलियाँ
जुगनुओं की-
निकलने लगीं,
हर दिशा
वस्त्र अपने-
बदलने लगीं,
सूर
उलझी जटा
क्या नहीं आजकल।
द्वार तक हिम-हवा-
थरथराते हुए,
आ-गयी
गीत-गोविन्द-
गाते हुए,
छंद
धनुयी छटा
क्या नहीं आजकल।