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"फूलों का क्या होगा / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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हवा की चाल भी कुछ नामुनासिब होती जाती थी
 
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मगर ये भी कोई सोचे
 
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कि फिर फूलों का क्या होगा
 
कि फिर फूलों का क्या होगा

21:13, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

सुना है
तितलियों पर फिर कोई हद ज़ारी होती है
अगर गुलकंद खुद ही
शहद की सब मक्खियों के घर पहुँच जाए
तो उनको गुल-ब-गुल आवारागर्दी की है हाजत क्या
हवा की चाल भी कुछ नामुनासिब होती जाती थी
सो तितली और मक्खी और हवा
नामहरमों से दूर रखी जा रही हैं
मगर ये भी कोई सोचे
कि फिर फूलों का क्या होगा
चमन में ऐसे कितने फूल होंगे
कि जो ख़ुद वस्ल और ख़ुद बारआवर हों