भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुश्किलों से जूझता / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | |
+ | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
− | |||
− | |||
− | |||
मुश्किलों से जूझता लड़ता रहेगा | मुश्किलों से जूझता लड़ता रहेगा | ||
13:53, 10 मई 2009 के समय का अवतरण
मुश्किलों से जूझता लड़ता रहेगा
आदमी हर हाल में ज़िन्दा रहेगा।
मंज़िलें फिर–फिर पुकारेंगी उसे ही
मंज़िलों की ओर जो बढ़ता रहेगा।
आँधियों का कारवाँ निकले तो निकले
पर दिये का भी सफर चलता रहेगा।
कल भी सब कुछ तो नहीं इतना बुरा था
और कल भी सब नहीं अच्छा रहेगा।
झूठ अपना रंग बदलेगा किसी दिन
सच मगर फिर भी खरा–सच्चा रहेगा।
देखने में झूठ का भी लग रहा है
बोलबाला अन्ततः सच का रहेगा।