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"है दिल को शौक़ उस बुत-ए-क़ातिल की दीद का / अमीर मीनाई" के अवतरणों में अंतर

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याँ और दोस्तों ने लिखा ख़त रसीद का </poem>
 
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21:57, 1 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण


है दिल को शौक़ उस बुत-ए-क़ातिल की दीद का
होली का रंग जिस को लहू है शहीद का

दुनिया परस्त क्या रहे उक़बा करेंगे तै
निकलेगा ख़ाक घर से क़दम ज़न मुरीद का

होने न पाए ग़ैर बग़लगीर यार से
अल्लाह यूँ ही रोज़ गुज़र जाए ईद का

सारा हिसाब ख़त्म हुआ हश्र हो चुका
पूछा गया न हाल तुम्हारे शहीद का

जा के सफ़र में भूल गए हमको वो अमीर
याँ और दोस्तों ने लिखा ख़त रसीद का