भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बैठी होगी संज्ञा / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("बैठी होगी संज्ञा / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:39, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
चाय का वक़्त है यह
यह नाश्ते का
यह दोपहर के खाने का वक़्त है
रात के खाने का वक़्त है यह....
अपने कमरे में बैठी होगी संज्ञा
अपनी दुनिया में खोई
अपनी किताबों के साथ
सोचती हुई अपने बारे में....
मेरे बारे में सोचती हुई
सोचती हुई उस हर आदमी के बारे में
उसके बारे में सोचता है जो।
रचनाकाल : 1992, विदिशा