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"भाषा / महेश सन्तुष्ट" के अवतरणों में अंतर

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भाषा को भी
 
भाषा को भी
 
निर्वस्त्र होते देखा है!
 
निर्वस्त्र होते देखा है!
 
'''मूल राजस्थानी से अनुवाद : दीनदयाल शर्मा'''
 
 
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12:15, 2 मई 2010 के समय का अवतरण

मैंने
भोंकने वाले
जानवरों की भाषा में
एक ही लय देखी है।

और देखा है
चिन्तकों को
मूक भाषा में
बातें करते।


मैंने
घरों में
केवल आदमी को ही नहीं
भाषा को भी
निर्वस्त्र होते देखा है!