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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही,
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
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सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं
सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नही,
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सर झुका सकते नही,
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हमने सदियॊ में ये आज़ादी कि नेमत पाई है,
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हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है
हमने ये नेमत पाई है,
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सैंकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है
सैकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है,
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मुस्कुरा कर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियां
हमने ये दौलत पाई है,
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कितने वीरानो से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है
मुस्कुरा कर खाई है सीनों पे अपने गोलियाँ,
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ख़ाक में हम अपनी इज्ज़़त को मिला सकते नहीं
सीनों पे अपने गोलियाँ,
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...
कितने वीरानो से गुज़रे है तो जन्नत पाई है।
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ख़ाक मॆ हम अपनी इज्ज़़त को मिला सकते नहीं,
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,
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क्या चलेगी ज़ुल्म की, अहले वफ़ा के सामने,
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क्या चलेगी ज़ुल्म की अहले-वफ़ा के सामने
अहले वफ़ा के सामने,
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नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने
नही सकता कोई, शोला हवा के सामने,
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लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई
शोला हवा के सामने,
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रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने
लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई,
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हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं
लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई,
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...
रुक नही सकता हमारी एकता के सामने,
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हम वो पत्थर है जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं,
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,
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वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे
सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं,
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हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख बदलते जाएंगे
सर झुका सकते नहीं,
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’गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन
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अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे
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एक धोखा खा चुके हैं और खा सकते नहीं
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...
  
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हम वतन के नौजवाँ है हम से जो टकरायेगा
हम साथ चलते जाएंगे,
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वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जायेगा
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख बदलते जाएंगे,
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वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मो-सितम
हम रुख़ बदलते जाएंगे,
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आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा
’गर वतन मे भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन,
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जो सबक बापू ने सिखलाया भुला सकते नहीं
जो कोई गद्दारे वतन,
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सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं...
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे,
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एक धोखा खा चुके हैं और खा सकते नहीं,
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अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,
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वन्दे मातरम, वन्दे मातरम,
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हम वतन के नौजवाँ है हम से जो टकरायेगा,
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हम से जो टकरायेगा,
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वो हमारी ठोकरों से ख़ाक मॆ मिल जायेगा,
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ख़ाक मॆ मिल जायेगा,
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वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मो-सितम,
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उम्र भर लहरायेगा,
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जो सबक बापू ने सिखलाया भुला सकते नहीं,
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सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं,
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सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं,
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21:18, 19 मार्च 2010 का अवतरण

रचनाकार: शकील बदायूनी                 

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं

हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है
सैंकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है
मुस्कुरा कर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियां
कितने वीरानो से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है
ख़ाक में हम अपनी इज्ज़़त को मिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

क्या चलेगी ज़ुल्म की अहले-वफ़ा के सामने
आ नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने
लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई
रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख बदलते जाएंगे
’गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे
एक धोखा खा चुके हैं और खा सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

हम वतन के नौजवाँ है हम से जो टकरायेगा
वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जायेगा
वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मो-सितम
आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा
जो सबक बापू ने सिखलाया भुला सकते नहीं
सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं...