भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अँधेरे में / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…) |
|||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
किताबों के पन्ने भी | किताबों के पन्ने भी | ||
रखती रही उनमें | रखती रही उनमें | ||
− | तितलियों के | + | तितलियों के पर |
+ | भी | ||
उकेरती रही नखों से | उकेरती रही नखों से | ||
हाशियों में अपने लिए | हाशियों में अपने लिए | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 34: | ||
लहुलुहान हथेलियों को | लहुलुहान हथेलियों को | ||
छापती रही कोरे काग़ज़ पर | छापती रही कोरे काग़ज़ पर | ||
− | दीवार | + | दीवार पर /धूप और बारिश पर |
ज्यूँ की त्यूँ | ज्यूँ की त्यूँ | ||
ताकि आने वाली पीढ़ियों को | ताकि आने वाली पीढ़ियों को |
06:54, 17 जुलाई 2010 का अवतरण
तुमने बिछाया
वह बिछी
तुमने ताना
वह तन गई
सिर नवा कर लिया
जो दिया तुमने
तुमने माँगा
तो लौटाया
बिन हील हुज्जत
लौ नहीं हुई
पर जलती रही
तपी नहीं पर पिघलती रही
तुम्हारे हुक़्मनामों के बावजूद लेकिन
पढ़ती रही अपने हक़ में लिखी गई
किताबों के पन्ने भी
रखती रही उनमें
तितलियों के पर
भी
उकेरती रही नखों से
हाशियों में अपने लिए
सूरज / नदी / बेल-बूटे
पंक्ति-बद्ध अक्षरों को
कभी नारों -सा उछालते
कभी झण्डे-सा उठाते
और कभी भाँजते तलवार की तरह
लहुलुहान हथेलियों को
छापती रही कोरे काग़ज़ पर
दीवार पर /धूप और बारिश पर
ज्यूँ की त्यूँ
ताकि आने वाली पीढ़ियों को
अँधेरे में इक चिराग़ मिले