भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ब्लैकमेलर-3 / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (ब्लैकमेलर-3/ वेणु गोपाल का नाम बदलकर ब्लैकमेलर-3 / वेणु गोपाल कर दिया गया है)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोपाल  
 
|संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोपाल  
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
डर!
 
डर!

12:41, 29 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

डर!
मेरे लिए कोई आवेग या भावना नहीं है बल्कि अलादीन का
चिराग़ है, जिसे छूने भर की देर है और वह
हाज़िर हो जाता है। निमित्त
याद होती है। हमेशा। जैसे

मैं कमरे में हूँ। और याद आता है कि पहली बार
वह मुझे खूँटी पर या चूल्हे पर दिखा था। इन्सानी
फ़ितरत के तहत नज़रें उस ओर उठ जाती हैं और
मैं पाता हूँ कि वहाँ है मुस्कुराता। मुझ पर
कोई घटिया फ़ब्ती कसता। मैं
एकदम बेचारा होता हूँ कि वह एक बढ़िया

ब्लैक-मेलर भी तो है। मैं
जब-जब पूरी कोशिश के साथ उसे याद
नहीं करना चाहता, तब-तब वह 'मेरे आक़ा' कहता हुआ
जिन्न की तरह हाज़िर हो जाता है। अलादीन
भी क्या मेरी ही तरह ही था? चिराग़ का गुलाम!