भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूर से अपना घर देखना चाहिए / विनोद कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो () |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=सब कुछ होना बचा रहेगा / विनोद कुमार शुक्ल | |संग्रह=सब कुछ होना बचा रहेगा / विनोद कुमार शुक्ल | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
दूर से अपना घर देखना चाहिए | दूर से अपना घर देखना चाहिए |
17:02, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
दूर से अपना घर देखना चाहिए
मजबूरी में न लौट सकने वाली दूरी से अपना घर
कभी लौट सकेंगे की पूरी आशा में
सात समुन्दर पार चले जाना चाहिए.
जाते जाते पलटकर देखना चाहिये
दूसरे देश से अपना देश
अन्तरिक्ष से अपनी पृथ्वी
तब घर में बच्चे क्या करते होंगे की याद
पृथ्वी में बच्चे क्या करते होंगे की होगी
घर में अन्न जल होगा की नहीं की चिंता
पृथ्वी में अन्न जल की चिंता होगी
पृथ्वी में कोई भूखा
घर में भूखा जैसा होगा
और पृथ्वी की तरफ लौटना
घर की तरफ लौटने जैसा.
घर का हिसाब किताब इतना गड़बड़ है
कि थोड़ी दूर पैदल जाकर घर की तरफ लौटता हूँ
जैसे पृथ्वी की तरफ