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असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 5

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[[चित्र:Veena_instrument.jpg]]
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राजा ने अलग सुना :
राजा ने अलग सुना "जय देवी यश:<br><br>काय वरमाल लिये गाती थी मंगल-गीत, दुन्दुभी दूर कहीं बजती थी, राज-मुकुट सहसा हलका हो आया था, मानो हो फल सिरिस का ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता सभी पुराने लुगड़े-से झड़ गये, निखर आया था जीवन-कांचन धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा ।
"जय देवी यशरानी ने अलग सुना :काय<br>वरमाल लिये<br>छँटती बदली में एक कौंध कह गयी -- गाती थी मंगलतुम्हारे ये मणि-गीतमाणिक,<br>दुन्दुभी दूर कहीं बजती थीकंठहार,<br>राजपट-मुकुट सहसा हलका हो आया थावस्त्र, मानो हो फल सिरिस का<br>ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता<br>सभी पुराने लुगड़ेमेखला किंकिणि -से झड़ गये, निखर आया था जीवन-कांचन<br>धर्मसब अंधकार के कण हैं ये ! आलोक एक है प्यार अनन्य ! उसी की विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा भार मेघ को, थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है आश्वस्त, सहज विश्वास भरी । रानी उस एक प्यार को साधेगी <br><br>
रानी ने अलग सुना [[चित्र:<br>छँटती बदली में एक कौंध कह गयी --<br>तुम्हारे ये मणि-माणिक, कंठहार, पट-वस्त्र,<br>मेखला किंकिणि --<br>सब अंधकार के कण हैं ये ! आलोक एक है<br>प्यार अनन्य ! उसी की<br>विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,<br>थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है<br>आश्वस्त, सहज विश्वास भरी ।<br>रानी<br>उस एक प्यार को साधेगी ।<br><br>Veena_instrument.jpg]]
[[चित्रसबने भी अलग-अलग संगीत सुना । इसको वह कृपा-वाक्य था प्रभुओं का -- उसकी आतंक-मुक्ति का आश्वासन :Veena_instrument.jpg]]<br><br>इसको वह भरी तिजोरी में सोने की खनक -- उसे बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुशबू । किसी एक को नयी वधू की सहमी-सी पायल-ध्वनि । किसी दूसरे को शिशु की किलकारी । एक किसी को जाल-फँसी मछली की तड़पन -- एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की । एक तीसरे को मंडी की ठेलमेल, गाहकों की अस्पर्धा-भरी बोलियाँ
सबने भी अलग-अलग संगीत सुना ।<br>इसको<br>वह कृपा-वाक्य था प्रभुओं का --<br>उसकी<br>आतंक-मुक्ति का आश्वासन :<br>इसको<br>वह भरी तिजोरी में सोने की खनक --<br>उसे<br>बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुशबू ।<br>किसी एक को नयी वधू की सहमी-सी पायल-ध्वनि ।<br>किसी दूसरे को शिशु की किलकारी ।<br>एक किसी को जाल-फँसी मछली की तड़पन --<br>एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की ।<br>एक तीसरे को मंडी की ठेलमेल, गाहकों की अस्पर्धा-भरी बोलियाँ<br><br> चौथे को मन्दिर मी ताल-युक्त घंटा-ध्वनि ।<br>और पाँचवें को लोहे पर सधे हथौड़े की सम चोटें<br>और छठें को लंगर पर कसमसा रही नौका पर लहरों की अविराम थपक ।<br>बटिया पर चमरौधे की रूँधी चाप सातवें के लिये --<br>और आठवें को कुलिया की कटी मेंड़ से बहते जल की छुल-छुल<br>इसे गमक नट्टिन की एड़ी के घुँघरू की<br>उसे युद्ध का ढाल :<br>इसे सझा-गोधूली की लघु टुन-टुन --<br>उसे प्रलय का डमरू-नाद ।<br>इसको जीवन की पहली अँगड़ाई<br>पर उसको महाजृम्भ विकराल काल !<br>सब डूबे, तिरे, झिपे, जागे --<br>ओ रहे वशंवद, स्तब्ध :<br>इयत्ता सबकी अलग-अलग जागी,<br>संघीत हुई,<br>पा गयी विलय ।<br><br> [[चित्र:Veena_instrument.jpg]]<br><br>
[[चित्र:Veena_instrument.jpg]]
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