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+ | गोदी में सोये शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ | ||
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+ | बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन, | ||
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+ | मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में | ||
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+ | सब कुछ को सौंप दिया था -- | ||
+ | सुना आपने जो वह मेरा नहीं, | ||
+ | न वीणा का था : | ||
+ | वह तो सब कुछ की तथता थी | ||
+ | महाशून्य | ||
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+ | अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय | ||
+ | जो शब्दहीन | ||
+ | सबमें गाता है ।" | ||
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− | + | मौन हुई । | |
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00:35, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण
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वीणा फिर मूक हो गयी ।
साधु ! साधु ! "
उसने
राजा सिंहासन से उतरे --
"रानी ने अर्पित की सतलड़ी माल,
हे स्वरजित ! धन्य ! धन्य ! "
संगीतकार
वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँक -- मानो
गोदी में सोये शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ
हट जाय, दीठ से दुलारती --
उठ खड़ा हुआ ।
बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन,
बोला :
"श्रेय नहीं कुछ मेरा :
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने
सब कुछ को सौंप दिया था --
सुना आपने जो वह मेरा नहीं,
न वीणा का था :
वह तो सब कुछ की तथता थी
महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय
जो शब्दहीन
सबमें गाता है ।"
नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकम्बली। लेकर कम्बल गेह-गुफा को चला गया ।
उठ गयी सभा । सब अपने-अपने काम लगे ।
युग पलट गया ।
प्रिय पाठक ! यों मेरी वाणी भी
मौन हुई ।
चित्र:Veena instrument.jpg