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| <font size=4>सप्तम सर्ग</font><br><br> | | <font size=4>सप्तम सर्ग</font><br><br> |
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− | अभिमानी मान–अवज्ञा से¸ <Br/>
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− | थर–थर होने संसार लगा। <Br/>
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− | पर्वत की उन्नत चोटी पर¸ <Br/>
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− | राणा का भी दरबार लगा।।1।। <Br/><Br/>
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− | अम्बर पर एक वितान तना¸ <Br/>
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− | बलिहार अछूती आनों पर। <Br/>
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− | मखमली बिछौने बिछे अमल¸ <Br/>
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− | चिकनी–चिकनी चट्टानों पर।।2।। <Br/><Br/>
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− | शुचि सजी शिला पर राणा भी <Br/>
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− | बैठा अहि सा फुंकार लिये। <Br/>
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− | फर–फर झण्डा था फहर रहा <Br/>
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− | भावी रण का हुंकार लिये।।3।। <Br/><Br/>
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− | भाला–बरछी–तलवार लिये <Br/>
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− | आये खरधार कटार लिये। <Br/>
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− | धीरे–धीरे झुक–झुक बैठे <Br/>
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− | सरदार सभी हथियार लिये।।4।। <Br/><Br/>
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− | तरकस में कस–कस तीर भरे <Br/>
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− | कन्धों पर कठिन कमान लिये। <Br/>
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− | सरदार भील भी बैठ गये <Br/>
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− | झुक–झुक रण के अरमान लिये।।5।। <Br/><Br/>
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− | जब एक–एक जन को समझा <Br/>
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− | जननी–पद पर मिटने वाला। <Br/>
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− | गम्भीर भाव से बोल उठा <Br/>
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− | वह वीर उठा अपना भाला।।6।। <Br/><Br/>
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− | तरू–तरू के मृदु संगीत रूके <Br/>
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− | मारूत ने गति को मंद किया। <Br/>
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− | सो गये सभी सोने वाले <Br/>
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− | खग–गण ने कलरव बन्द किया।।7।। <Br/><Br/>
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− | राणा की आज मदद करने <Br/>
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− | चढ़ चला इन्दु नभ–जीने पर¸ <Br/>
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− | झिलमिल तारक–सेना भी आ <Br/>
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− | डट गई गगन के सीने पर।।8।। <Br/><Br/>
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− | गिरि पर थी बिछी रजत चादर¸ <Br/>
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− | गह्वर के भीतर तम–विलास। <Br/>
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− | कुछ–कुछ करता था तिमिर दूर¸ <Br/>
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− | जुग–जुग जुगनू का लघु प्रकाश।।9।। <Br/><Br/>
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− | गिरि अरावली के तरू के थे <Br/>
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− | पत्ते–पत्ते निष्कम्प अचल। <Br/>
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− | वन–वेलि–लता–लतिकाएं भी <Br/>
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− | सहसा कुछ सुनने को निश्चल।।10।। <Br/><Br/>
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− | था मौन गगन¸ नीरव रजनी¸ <Br/>
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− | नीरव सरिता¸ नीरव तरंग। <Br/>
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− | केवल राणा का सदुपदेश¸ <Br/>
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− | करता निशीथिनी–नींद भंग।।11।। <Br/><Br/>
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− | वह बोल रहा था गरज–गरज¸ <Br/>
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− | रह–रह कर में असि चमक रही। <Br/>
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− | रव–वलित बरसते बादल में¸ <Br/>
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− | मानों बिजली थी दमक रही।।12।। <Br/><Br/>
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− | ्"सरदारो¸ मान–अवज्ञा से <Br/>
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− | मां का गौरव बढ़ गया आज। <Br/>
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− | दबते न किसी से राजपूत <Br/>
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− | अब समझेगा बैरी–समाज।्"।।13।। <Br/><Br/>
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− | वह मान महा अभिमानी है <Br/>
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− | बदला लेगा ले बल अपार। <Br/>
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− | कटि कस लो अब मेरे वीरो¸ <Br/>
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− | मेरी भी उठती है कटार।।14।। <Br/><Br/>
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− | भूलो इन महलों के विलास <Br/>
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− | गिरि–गुहा बना लो निज–निवास। <Br/>
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− | अवसर न हाथ से जाने दो <Br/>
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− | रण–चण्डी करती अट्टहास।।15।। <Br/><Br/>
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− | लोहा लेने को तुला मान <Br/>
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− | तैयार रहो अब साभिमान। <Br/>
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− | वीरो¸ बतला दो उसे अभी <Br/>
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− | क्षत्रियपन की है बची आन।।16।। <Br/><Br/>
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− | साहस दिखलाकर दीक्षा दो <Br/>
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− | अरि को लड़ने की शिक्षा दो। <Br/>
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− | जननी को जीवन–भिक्षा दो <Br/>
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− | ले लो असि वीर–परिक्षा दो।।17।। <Br/><Br/>
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− | रख लो अपनी मुख–लाली को <Br/>
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− | मेवाड़–देश–हरियाली को। <Br/>
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− | दे दो नर–मुण्ड कपाली को <Br/>
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− | शिर काट–काटकर काली को।।18।। <Br/><Br/>
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− | विश्वास मुझे निज वाणी का <Br/>
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− | है राजपूत–कुल–प्राणी का। <Br/>
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− | वह हट सकता है वीर नहीं <Br/>
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− | यदि दूध पिया क्षत्राणी का।।19।। <Br/><Br/>
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− | नश्वर तनको डट जाने दो <Br/>
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− | अवयव–अवयव छट जाने दो। <Br/>
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− | परवाह नहीं¸ कटते हों तो <Br/>
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− | अपने को भी कट जाने दो।।20।। <Br/><Br/>
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− | अब उड़ जाओ तुम पांखों में <Br/>
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− | तुम एक रहो अब लाखों में। <Br/>
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− | वीरो¸ हलचल सी मचा–मचा <Br/>
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− | तलवार घुसा दो आंखों में।।21।। <Br/><Br/>
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− | यदि सके शत्रु को मार नहीं <Br/>
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− | तुम क्षत्रिय वीर–कुमार नहीं। <Br/>
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− | मेवाड़–सिंह मरदानों का <Br/>
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− | कुछ कर सकती तलवार नहीं।।22।। <Br/><Br/>
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− | मेवाड़–देश¸ मेवाड़–देश¸ <Br/>
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− | समझो यह है मेवाड़–देश। <Br/>
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− | जब तक दुख में मेवाड़–देश। <Br/>
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− | वीरो¸ तब तक के लिए क्लेश।।23।। <Br/><Br/>
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| सन्देश यही¸ उपदेश यही <Br/> | | सन्देश यही¸ उपदेश यही <Br/> |
| कहता है अपना देश यही। <Br/> | | कहता है अपना देश यही। <Br/> |
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| मरने कटने का क्लेश नहीं <Br/> | | मरने कटने का क्लेश नहीं <Br/> |
| कम हो सकता आवेश नहीं।।30।। <Br/><Br/> | | कम हो सकता आवेश नहीं।।30।। <Br/><Br/> |
− | परवाह नहीं¸ परवाह नहीं <Br/>
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− | मैं हूं फकीर अब शाह नहीं। <Br/>
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− | मुझको दुनिया की चाह नहीं <Br/>
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− | सह सकता जन की आह नहीं।।31।। <Br/><Br/>
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− | अरि सागर¸ तो कुम्भज समझो <Br/>
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− | बैरी तरू¸ तो दिग्गज समझो। <Br/>
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− | आंखों में जो पट जाती वह <Br/>
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− | मुझको तूफानी रज समझो।।32।। <Br/><Br/>
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− | यह तो जननी की ममता है <Br/>
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− | जननी भी सिर पर हाथ न दे। <Br/>
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− | मुझको इसकी परवाह नहीं <Br/>
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− | चाहे कोई भी साथ न दे।।33।। <Br/><Br/>
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− | विष–बीज न मैं बोने दूंगा <Br/>
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− | अरि को न कभी सोने दूंगा। <Br/>
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− | पर दूध कलंकित माता का <Br/>
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− | मैं कभी नहीं होने दूंगा।्"।।34।। <Br/><Br/>
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− | प्रण थिरक उठा पक्षी–स्वर में <Br/>
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− | सूरज–मयंक–तारक–कर में। <Br/>
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− | प्रतिध्वनि ने उसको दुहराया <Br/>
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− | निज काय छिपाकर अम्बर में।।35।। <Br/><Br/>
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− | पहले राणा के अन्तर में <Br/>
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− | गिरि अरावली के गह्वर में। <Br/>
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− | फिर गूंज उठा वसुधा भर में <Br/>
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− | वैरी समाज के घर–घर में।।36।। <Br/><Br/>
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− | बिजली–सी गिरी जवानों में <Br/>
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− | हलचल–सी मची प्रधानों में। <Br/>
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− | वह भीष्म प्रतिज्ञा घहर पड़ी <Br/>
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− | तत्क्षण अकबर के कानों में।।37।। <Br/><Br/>
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− | प्रण सुनते ही रण–मतवाले <Br/>
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− | सब उछल पड़े ले–ले भाले। <Br/>
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− | उन्नत मस्तक कर बोल उठे <Br/>
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− | ्"अरि पड़े न हम सबके पाले।।38।। <Br/><Br/>
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− | हम राजपूत¸ हम राजपूत¸ <Br/>
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− | मेवाड़–सिंह¸ हम राजपूत। <Br/>
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− | तेरी पावन आज्ञा सिर पर¸ <Br/>
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− | क्या कर सकते यमराज–दूत।।39।। <Br/><Br/>
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− | लेना न चाहता अब विराम <Br/>
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− | देता रण हमको स्वर्ग–धाम। <Br/>
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− | छिड़ जाने दे अब महायुद्ध <Br/>
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− | करते तुझको शत–शत प्रणाम।।40।। <Br/><Br/>
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− | अब देर न कर सज जाने दे <Br/>
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− | रण–भेरी भी बज जाने दे। <Br/>
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− | अरि–मस्तक पर चढ़ जाने दे <Br/>
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− | हमको आगे बढ़ जाने दे।।41।। <Br/><Br/>
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− | लड़कर अरि–दल को दर दें हम¸ <Br/>
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− | दे दे आज्ञा ऋण भर दें हम¸ <Br/>
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− | अब महायज्ञ में आहुति बन <Br/>
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− | अपने को स्वाहा कर दें हम।।42।। <Br/><Br/>
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− | मुरदे अरि तो पहले से थे <Br/>
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− | छिप गये कब्र में जिन्दे भी¸ <Br/>
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− | 'अब महायज्ञ में आहुति बन्'¸ <Br/>
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− | रटने लग गये परिन्दे भी।।43।। <Br/><Br/>
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− | पौ फटी¸ गगन दीपावलियां <Br/>
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− | बुझ गई मलय के झोंकों से। <Br/>
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− | निशि पश्चिम विधु के साथ चली <Br/>
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− | डरकर भालों की नोकों से।।44।। <Br/><Br/>
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− | दिनकर सिर काट दनुज–दल का <Br/>
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− | खूनी तलवार लिये निकला। <Br/>
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− | कहता इस तरह कटक काटो <Br/>
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− | कर में अंगार लिये निकला।।45।। <Br/><Br/>
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− | रंग गया रक्त से प्राची–पट <Br/>
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− | शोणित का सागर लहर उठा। <Br/>
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− | पीने के लिये मुगल–शोणित <Br/>
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− | भाला राणा का हहर उठा।।46।। <Br/><Br/>
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